बुधवार, 29 सितंबर 2010

या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को

भूलना मत दीन और ईमान को.
या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.
अमन से सुन्दर है कुछ दूजा नहीं.
प्रेम से बढ़कर कोई पूजा नहीं.
बांटना क्या राम और रहमान को.
या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.
प्यार और खुशियाँ ही बसती थी जहाँ.
हिन्द वो इकबाल का खोया कहाँ.
किसने जख्मी कर दिया मुस्कान को.
या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.
स्वार्थ से हरगिज़ ना तौलो प्यार को.
दुःख मे पुरी बदलो ना व्यवहार को.
थाम लो तुम गिर रहे इंसान को.
या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611

बुधवार, 23 जून 2010

महाभारत- सार

राजा और दरबार की, परलोक की-संसार की.गाथा है भगवान् और इंसान के व्यवहार की.शाप की-अभिशाप की, अनुराग की-वैराग की.घात की-आघात की, कहीं छल- कपट-प्रतिघात की.मिलन की-वियोग की, दुर्योग की- संयोग की.नीति की-कुनीति की, कहीं रीति की- राजनीति की.बात ये आचार की, विचार की- संस्कार की.गाथा है भगवान् और इंसान के व्यवहार की.ज़िन्दगी की- काल की, कहीं भूत की- बेताल की.शास्त्र की- शास्त्रार्थ की, कहीं जादुई ब्रम्हास्त्र की.नाथ की- अनाथ की, कहीं बात की- बेबात की.अर्थ की- अनर्थ की, कहीं स्वार्थ की- परमार्थ की.यह कहानी कुलबधु के लाज की- चीत्कार की.गाथा है भगवान् और इंसान के व्यवहार की.जीत की- कहीं हार की,कहीं हक - कहीं अधिकार की.मान की- अपमान की, कहीं शान और स्वाभिमान की.झूठ की- कहीं सत्य की, कहीं भक्ति की- कहीं शक्ति की.कहीं मित्रता में त्याग की, कहीं जननी के दुर्भाग्य की.लोभ की- कहीं क्षोभ की, कहीं दंड की- पुरस्कार की.गाथा है भगवान् और इंसान के व्यवहार की.गीतकार- सतीश मापतपुरीमोबाइल- 9334414611

मंगलवार, 8 जून 2010

मानवता का धरोहर धरहरा

बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ६ जून को भागलपुर के नवगछिया प्रखंड में धरहरा गाँव में गए थे. इस गाँव की परम्परा उन्हें वहाँ खींच ले गयी थी. मुझे याद है, मैं अपनी एक कहानी में लिखा था कि परम्परा इंसान के लिए बनी है - इंसान परम्परा के लिए नहीं बना है. धरहरा गाँव की परम्परा अदभुत है, मैं सलाम करता हूँ इस रिवाज़ को. सचमुच यह परम्परा इंसान के लिए बनी है. इस गाँव में बेटी के जन्म लेने पर पेड़ लगाने की परम्परा है. बेटी और पर्यावरण के प्रति इस गाँव के लोगों का प्यार वाकई सराहनीय है. इस गाँव के लोगों के ज़ज्बे को मापतपुरी का शत- शत नमन.

बुधवार, 5 मई 2010

ग़ज़ल

यूँ ना खेला करो दिल के ज़ज्बात से .
जिंदगी थक गयी ऐसे हालात से .
रोज़ मिलते रहे सिर्फ मिलते रहे .
अब तो जी भर गया इस मुलाक़ात से .
ख्वाब में आता हँसता लिपटता सनम .
हो गई आशनाई हमें रात से .
गा रहा था ये दिल हंस रही थी नज़र .
क्या पता आँख भर आई किस बात से .
फन को मापतपुरी पूछता कौन है .
पूछे जाते यहाँ लोग अवकात से .
गीतकार -सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611

मंगलवार, 4 मई 2010

अपनी निजी कारणों से मैं नेट से ज़रा दूर रहा , इसके लिए मैं सबसे माफ़ी मांग रहा हूँ . अब मैं लौट आया हूँ .

अपनी निजी कारणों से मैं नेट से ज़रा दूर रहा , इसके लिए मैं सबसे माफ़ी मांग रहा हूँ . अब मैं लौट आया हूँ .

शनिवार, 20 मार्च 2010

बिकास -गीत (बिहार -दिवस पर विशेष )

बहेला बिकास के बयरिया - बिहंस उठल खेतवा -बधरिया.
अब ना बिहार आपन केहू के मोहताज बा , ना जाइब बहरा अब एहिजे काम -काज बा .
दुसरो के भर देब अंजुरिया- बिहंस उठल खेतवा -बधरिया.
खेतवा में लहरेला धनवा के बलिया , अब ना मुआर होई गेहुँवा -मसुरिया .
खेते -खेते टिउबेल-नहरिया - बिहंस उठल खेतवा -बधरिया.
धनिया कहेले एजी सुनी हमार बतिया , अब इस्कूल जाई हमरो परबतिया .
नाहीं माजी घर में लोटा -थरिया -बिहंस उठल खेतवा -बधरिया.
अब का फिकिर गोरी भाग चड़चड़आइल ,गाँव से शहर तक सड़क पिटाइल.
फसल बेचब हटिया -बजरिया -बिहंस उठल खेतवा -बधरिया .
अपना लेखा बचवन के हम ना बनाइब,पुरी हम ना पढ़ली बाकिर उनके पढ़ाइब .
उहो करिहन हाकिम बन नोकरिया -बिहंस उठल खेतवा -बधरिया .
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाइल -09334414611

रविवार, 7 मार्च 2010

स्वयंसिद्धा (अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस आठ मार्च पर विशेष )

माता बन ममता दान किया . बन बहन कवच का काम किया .
प्रेयसी बन प्यार लुटाती है . पत्नी बन सेज सजाती है .
सुकुमार है वो -कमजोर नहीं . शर्मीली है -मुहंचोर नहीं .
करती है जो सिंह सवारी . नाम है उसका जग में नारी .
लाल किया तारीख का पन्ना. लक्ष्मी -रज़िया ,चाँद -चेन्नमा .
आज कमर कसकर निकली है कलियुग में फिर दुर्गा .
समर में स्वयं को सिद्ध करे जो , कहलाती स्वयंसिद्धा .
गीतकार -- सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611